बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता इरफान खान आज अपनी जिंदगी की जंग हार गए लेकिन उन्हें जब अपनी बीमारी के बारे में पता चला तो वह पूरी तरह से टूट गए थे उनकी मनोस्थिति का अंदाजा आप उनकी लिखी अंतिम चिट्ठी को पढ़कर लगा सकते हैं।
कुछ महीने पहले अचानक मुझे पता चला कि मैं न्यूरोएन्डोक्राइन कैंसर से ग्रस्त हूं, मैंने पहली बार यह शब्द सुना था। खोजने पर मैंने पाया कि मेरी इस बीमारी पर बहुत ज़्यादा शोध नहीं हुए हैं, क्योंकि यह एक अजीब शारीरिक अवस्था का नाम है और इस वजह से इसका इलाज नामुमकिन ही है।
अभी तक अपने सफ़र में मैं तेज़-मंद गति से चलता चला जा रहा था. मेरे साथ मेरी योजनायें, आकांक्षाएं, सपने और मंज़िलें थीं। मैं इनमें लीन बढ़ा जा रहा था कि अचानक टीसी ने पीठ पर टैप किया, “आप का स्टेशन आ रहा है, प्लीज़ उतर जाएं !
मेरी समझ में नहीं आया, “ना ना मेरा स्टेशन अभी नहीं आया है जवाब मिला, ”अगले किसी भी स्टाप पर आपको उतरना होगा, आपकी मंजिल आ गई है”

अचानक एहसास होता है कि आप किसी ढक्कन (कॉर्क) की तरह अनजान सागर में, अप्रत्याशित लहरों पर बह रहे हैं… लहरों को क़ाबू कर लेने की ग़लतफ़हमी लिए…..इसी हड़बोंग, सहम और डर में घबरा कर मैं अपने बेटे से कहता हूँ
“आज की इस हालत में मैं केवल इतना ही चाहता हूं… मैं इस मानसिक स्थिति को हड़बड़ाहट, डर, बदहवासी की हालत में नहीं जीना चाहता. मुझे किसी भी सूरत में मेरे पैर चाहिए, जिन पर खड़ा होकर अपनी हालत को तटस्थ हो कर जी पाऊं. मैं खड़ा होना चाहता हूं.”
ऐसी मेरी मंशा थी, मेरा इरादा था…कुछ हफ़्तों के बाद मैं एक अस्पताल में भर्ती हो गया. बेइंतेहा दर्द हो रहा है। ये तो मालूम था कि दर्द होगा, लेकिन ऐसा दर्द… अब दर्द की शिद्दत समझ में आ रही है।
कुछ भी काम नहीं कर रहा है. ना कोई सांत्वना, ना कोई दिलासा. पूरी कायनात उस दर्द के पल में सिमट आई थी. दर्द हद से ज्यादा बड़ा और विशाल महसूस हुआ.

मैं जिस अस्पताल में भर्ती हूं, उसमें एक बालकनी भी है जिससे बाहर का नज़ारा दिखता है। कोमा वॉर्ड ठीक मेरे ऊपर है। सड़क की एक तरफ मेरा अस्पताल है और दूसरी तरफ लॉर्ड्स स्टेडियम है। वहां विवियन रिचर्ड्स का मुस्कुराता पोस्टर है. मेरे बचपन के ख्वाबों का मक्का, उसे देखने पर पहली नज़र में मुझे कोई एहसास ही नहीं हुआ. मानो वह दुनिया कभी मेरी थी ही नहीं.
मैं दर्द की गिरफ्त में हूं…
और फिर एक दिन यह एहसास हुआ… जैसे मैं किसी ऐसी चीज़ का हिस्सा नहीं हूं, जो निश्चित होने का दावा करे। ना अस्पताल और ना स्टेडियम. मेरे अंदर जो शेष था, वह वास्तव में कायनात की असीम शक्ति और बुद्धि का प्रभाव था. मेरे अस्पताल का वहां होना था। मन ने कहा। केवल अनिश्चितता ही निश्चित है.

इस एहसास ने मुझे समर्पण और भरोसे के लिए तैयार किया. अब चाहे जो भी नतीजा हो, यह चाहे जहां ले जाए, आज से आठ महीनों के बाद, या आज से चार महीनों के बाद या फिर दो साल. चिंता दरकिनार हुई और फिर विलीन होने लगी और फिर मेरे दिमाग़ से जीने-मरने का हिसाब निकल गया.
पहली बार मुझे शब्द ‘आज़ादी’ का एहसास हुआ, सही अर्थ में! एक उपलब्धि का एहसास.
इस कायनात की करनी में मेरा विश्वास ही पूर्ण सत्य बन गया. उसके बाद लगा कि वह विश्वास मेरी एक एक कोशिका में पैठ गया. वक़्त ही बताएगा कि वह ठहरता है या नहीं. फ़िलहाल मैं यही महसूस कर रहा हूं.

इस सफ़र में सारी दुनिया के लोग… सभी मेरे सेहतमंद होने की दुआ कर रहे हैं, प्रार्थना कर रहे हैं, मैं जिन्हें जानता हूं और जिन्हें नहीं जानता, वे सभी अलग-अलग जगहों और टाइम ज़ोन से मेरे लिए दुआ कर रहे हैं. मुझे लगता है कि उनकी दुआएं मिल कर एक हो गई हैं, एक बड़ी शक्ति. तीव्र जीवन धारा बन कर मेरे स्पाइन से मुझमें प्रवेश कर सिर के ऊपर कपाल से अंकुरित हो रही हैं.
अंकुरित होकर यह कभी कली, कभी पत्ती, कभी टहनी और कभी शाखा बन जाती है. मैं खुश होकर इन्हें देखता हूं। लोगों की सामूहिक प्रार्थना से उपजी हर टहनी, हर पत्ती, हर फूल मुझे एक नई दुनिया दिखाती है. एहसास होता है कि ज़रूरी नहीं कि लहरों पर ढक्कन (कॉर्क) का नियंत्रण हो। जैसे आप क़ुदरत के पालने में झूल रहे हों!
(सलाम)